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जिस हींग के बिना भारतीय रसोई अधूरी है आखिर वो पौधे से पैकेट तक पहुंचती कैसे है?

छोटे कंकड़ की तरह दिखने वाले हींग सौंफ़ की प्रजाति के एक पौधे से तैयार होती है. हींग का पौधा बहुत अधिक बड़ा नहीं होता. इसकी ऊंचाई लगभग 1 से 1.5 मी तक रहता है. वैसे तो इस पौधे की पैदावार भूमध्यसागर क्षेत्र से लेकर मध्य एशिया तक होती है. मगर यह मूल रूप से एक ईरानी पौधा है. भारत में हींग को ‘हिंगु’, हींगर, यांग और इंगुवा जैसे नामों से भी जाना जाता है. यह मुख्यत: दो प्रकार की होती है.
पहली काबूली सुफाइद (दुधिया सफेद हींग) और दूसरी हींग लाल. सफ़ेद हींग पानी में घुल जाती है, जबकि लाल या काली हींग तेल में घुलती है. हींग में सल्फर पाया जाता है, जोकि इसकी तेज गंध का एक बड़ा कारण है. बाजार में हींग आपको ‘टियर्स’ यानी पतले, ‘मास’ यानी ठोस और ‘पेस्ट’ यानी पाउडर के रूप में मिलती है.

जाने कैसे बनती है हींग

एक कठिन प्रक्रिया से गुज़र कर हींग हमारी रसोई तक पहुंचती है. इसे फेरुला एसाफोइटीडा नामक पौधे की जड़ से निकाले गए रस से तैयार किया जाता है, जोकि मुख्यत: अफगानिस्तान, कजाखस्तान, उजबेकिस्तान और ईरान के ठंडे शुष्क पहाड़ों में मिलता है. फेरुला की जड़ों से रस का निकाला जाना हींग बनाने की प्रारंभिक कड़ी है. 
कच्ची हींग तीखी गंध वाली होती है. इसे खाने लायक बनाने के लिए इसमें गोंद, स्टार्च मिलाया जाता है. इसके बाद इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तैयार किया जाता है. कुल मिलाकर हींग का जो रूप बाज़ार से हम तक पहुंचता है, वह उस स्वरूप में पैदा नहीं होती है. उसे अन्य खाद्य पदार्थों के साथ मिलाकर खाने लायक बनाया जाता है.

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