सरकार के हालिया कदम का असर होगा कि दूसरे देश भी अपने दस्तावेजों में इस देश का नाम सिर्फ नेपाल लिखेंगे। इसी तरह देश की पाठ्यपुस्तकों में भी नाम बदलना पड़ेगा। जबकि नेपाल के संविधान की धारा 56 (1) में ये साफ लिखा है कि नेपाल संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य का मुख्य ढांचा तीन स्तरों वाला होगा। ये स्तर हैं- संघीय, प्रादेशिक और स्थानीय। इसी ढांचे के अनुरूप देश का आधिकारिक नाम संविधान में तय किया गया था।
अब सत्ताधारी दल के भीतर इस मुद्दे को सीधे प्रधानमंत्री ओली और उनकी सरकार पर निशाना साधा जा रहा है। पार्टी की स्थायी समिति के सदस्य लीलामणि पोखरेल ने एक बयान में कहा है कि प्रधानमंत्री ओली लगातार ऐसे कदम उठा रहे हैं, जिनका मकसद मौजूद व्यवस्था को ध्वस्त करना है। कम्युनिस्ट पार्टी की ही सांसद राम कुमारी झंकरी ने इसे संघीय व्यवस्था को कमजोर करने वाला कदम करार दिया है।
ये इल्जाम भी लगा है कि हालांकि ओली सरकार ने ये फैसला सितंबर में ही ले लिया था, लेकिन इसकी जानकारी प्रेस कांफ्रेंस के जरिए नहीं दी गई, जैसाकि आम चलन है। जब सर्कुलर जारी किया गया तो उसके बाद धीरे-धीरे ये जानकारी सार्वजनिक दायरे में आई। जब उस बारे में सवाल पूछा गया तब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि कैबिनेट ने ये निर्णय सितंबर ही ले लिया था। जब ये फैसला लिया गया, तो उसके काफी समय बाद तक संचार और सूचना तकनीक के मंत्रालय की वेबसाइट पर इसका कोई उल्लेख नहीं था।
जबकि सरकार के तमाम फैसलों की इस पर तुरंत जानकारी दी जाती है। फैसले को छिपाए रखने के सरकार के रवैये पर भी सवाल उठाए गए हैं। कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ नेताओं ने मीडिया से कहा है कि गोपनीयता बरतने के सरकार के तरीके से सरकार की मंशा पर शक खड़ा होता है।
नेपाल के गणराज्यीय संविधान को सितंबर 2015 में लागू किया गया था। उसके पहले सात साल तक इसे बनाने की प्रक्रिया चली। उस दौरान संविधान सभा का दो बार चुनाव हुआ। गणराज्यीय संविधान बनाने की कोशिश 2005 में राजतंत्र के खात्मे के बाद शुरू हुई थी। संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि देश के नाम से संघीय गणराज्य शब्द हटाना संविधान की भावना पर सीधा प्रहार है।